Mehfil-Most popular poetry of Dr. Kumar Vishwas - O Kalpvraksh ki sonjuhi

ओ कल्पवृक्ष की सोनजुही ! ओ अमलतास की अमलकली! धरती के आतप से जलते.. मन पर छाई निर्मल बदली..! मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा | तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा || तुम कल्पवृक्ष का फूल और मैं धरती का अदना गायक , तुम जीवन के उपभोग योग्य ,मैं नहीं स्वयं अपने लायक , तुम नहीं अधूरी गजल शुभे ! तुम साम-गान सी पावन हो , हिम शिखरों पर सहसा कौंधी ,बिजुरी सी तुम मनभावन हो, इसलिये , व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा | तुम मुझको करना माफ ,तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा|| तुम जिस शय्या पर शयन करो ,वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो , जिस आँगन की हो मौलश्री ,वह आँगन क्या वृन्दावन हो , जिन अधरों का चुम्बन पाओ ,वे अधर नहीं गंगातट हों , जिसकी छाया बन साथ रहो ,वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो , पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा | तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा|| मै तुमको चाँद सितारों का सौंपू उपहार भला कैसे ? मैं यायावर बंजारा साधूँ सुर संसार भला कैसे ? मै जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ शुभे ! बारूद बिछी धरती पर कर लूँ दो पल प्यार भ...